बेरोजगारों पर जमानें वालों ने बड़े फिकरे कसे हैं जमानों से।मैंने पुरानें फिल्मों में देखा है लैलाओं को मजनुओं पर तरस खाते हुए और साथ देते हुए भी ।लेकिन इस महंगाई भरे ज़माने में महँगी मुहब्बत की मार बेरोजगार मजनुओं पर इतनी ज्यादा है की गौर करैं तो बेचारों के लिए अंतरात्मा से आह और कराह निकलती है ।एक बेरोजगार मजनू के अंतरात्मा का विश्लेषण कुछ इस तरह है :
वो बाबु, शोना, बेटू, कह के मेरे दिल को लुभाते रहते है , फिर बेटू रुपे १०० का recharge करा दो, कह कर के हमें दहलाते हैं।बेबाक मुहब्बत रुसवा हो, मीना बाज़ार को जाती है ,चूड़ी कंगन बिंदिया सैंडल, सब मेरे ये पर्स हिलाते हैं।
बिल की है उनको परवाह कहाँ, वो घंटो घंटों बात करें ,नानी की ,सहेली की ,पडोसी के कुत्ते की ,फिर ये भी शिकायत रहती है,बाबु बातें तुम और करो ।क्या मैं सुनाऊ, क्या मैं बताऊ, दिल है के बेजार है अब, लौकी महँगी, कद्दू महँगी ,महँगी हो गयी है प्यार ये अब ।दिल ये है तराजू बन गयी अब ,तौलो पैसों का प्यार ये अब ।

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