आज मुझे बरबस ही अपने देश के बदलते परिद्रिष्य के बारे में लिखने को जी कर रहा है....उस देश की जिसके उसूलो, संघर्षो,प्रेम के नए आयामों और कश्मीर के बर्फ में ढकी सैकड़ो कहानियो से पूरी इतिहास ढकी पड़ी है।उस देश की जिसने हमेशा प्रेम और भाईचारा का पाठ पढाया ।हमारे देश में कोई चंगेज खां,कोई सिकंदर ,कोई तैमुर लंग नहीं हुआ....हाँ हुए हैं तो गौतम बुद्ध,महात्मा गाँधी..अमन और शांति का चिराग पुरे देश में फ़ैलाने को ।प्रेम के अनोखे मायने लेकर कृष्ण आये हैं,कबीर की अमृत वाणी आई है,स्वामी विवेकानंद आये है ।
पुरे इतिहास को खंगाल कर देख लें ,विश्व के किसी भी कालिख भरे युद्ध का इतिहास देख लें ....भारत ने किसी पे पहले हमला नहीं किया ।चीनी ....हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा लगाकर...... हथियारों से लैश होकर आ गए हमारे सामने.... हमें नेश्तोनाबुद करने.....हम डटे रहे ....हटे नहीं .....पहले हमला भी नहीं किया.....भले ही वो सामने आ गए....फिर अचानक हमला कर डाला ....पर हमने अपनी आवाजे बुलंद की और कुचल डाला उन्हें जो भाई -भाई का नारा लगाते आये थे ....पर साथ में मंशा कुछ और लाये थे ।ये भी एक अंदाज रहा है अपने देश का....कर्त्तव्य के निर्वाह का ......भरी पड़ी है हमारी कहानियां....हर तरफ खुशियाँ थी और साथ में खुशी के रंग, भाईचारे की ईद , मस्ती की दिवाली..।
सम्राट अशोक ने शस्त्र त्याग दिया ....बुद्ध के शरण में गए ...पश्चाताप किया ....अकबर ने जोधा बाई के साथ प्रभु को नमस्कार किया ....यहाँ यहीं था प्रेम और प्रेम की लड़ाई ।
क्युकी..यहाँ की संस्कृति उच्च थी ....सोने की चिड़िया थी ...यहाँ एकव्रती, पत्निव्रता पुरुष भी थे ...wife swaping नहीं थी ।पर अब इसी देश के लोग.... जो तैमुर लंग और चंगेज खां हो चुके है ....जो पहले नहीं थे..पश्चिम के नक़ल की होड़ नहीं थी ...नेता जैसे जीव नहीं थे....इस देश के महिमा को सच्चे मायने में खंडित कर रहे है ।
आज हमारी पीढ़ी...... महात्मा गाँधी और नेहरु पर कीचड़ उछालते है.....फेसबुक पर कहीं से कुछ भी डालकर उनकी असली छवि बिगाड़ते है और कहते है भ्रष्ट थे ,गलत थे,....कभी उस युग में जाके देख पाते,महात्मा और नेहरु के जगह पे खुद को रख पाते...तो शायद आज ये नहीं कहते ।आज हम अपने मतलब के लिए अपने भगवान भी बदलने लगे है ....लोग बदलगे लगे है ...सोच,और संस्कृति बदलने लगी है।आज हम खुद..दुसरे को उकसा कर... खुद ही प्रहार पहले करते है ।
सबसे ज्यादा डर हमें आज बाहर वालों से नहीं बल्कि अन्दर......अपने जमीं वालों से होने लगा है।प्रेम के जगह हिंसा की बैठके लगती है अब....अब होली और दिवाली में वो मजा नहीं आता।पडोसी के जुम्मन चाचा अब दशहरे में आने से डरते है ...कहीं उनका ही दहन न हो जाये.........पंडित जी बकरीद में छुपे छुपे फिरते है...हलाली के डर से।नेता जी नरसंहार रोकने के लिए नए नरसंहार करवाते है ...संघारको से ही मिलकर।
आज शांति का पैगाम देने वाले बाबाओं के सीडियां निकलती है ...बालाओं के साथ...हथकड़ियाँ लगायी जाती है।आज हैसियत के हिसाब से आदमी को सजा सुनाई जाती है...ज्यादा हैसियत को सजा कम ।
आज हम विश्व में अव्वल आने की होड़ में झूठी दौड़ में शामिल हैं,जबकि असली दौड़ में हम पिछलते जा रहे हैं।आज सिकंदर को भी शर्म आ जाये ....आज वो कहीं पीछे है और कई लोग उससे आगे ...देश को डुबाने के लिए।
जरुरत है की हम अपनी असली पहचान ना खोये...अपनी उसी संस्कृति के दम पर हम दुनियां में अव्वल हो सकेंगे...अन्यथा खुद से सी पिछड़ के बिछड़ जायेंगे।भारत ऐसी भूमि है जहाँ पर लोग आकार प्रेम और शांति के सही मायने समझने की कोशिश करते है......
काश हर इन्सान फिर उसी भारत के निर्माण में लग जाता.. जो सही मायने में प्रेम और खुशहाली का प्रतिक था।
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