जाग-जाओ-हमवतन


इस अंजुमन के बाँहों में देखो हैं छाले पड़ गए ,
एक शख्स भी आता नहीं इनके सहारे के लिए,
इस मुल्क के तक़दीर को देखो कभी तुम गौर से,
एक आदमी आता नहीं एक आदमी के वास्ते ।


अब झील भी कहती कहानी वादियों को देखकर,
एक वक़्त था जब गूंजती शहनाइया थी जश्न की,
अब वक़्त है  जब चीखती है सरजमीं  ये खौफ  से ,
ये सरजमीं खामोश  है दुख की स्याही लाल से , 
की कोई भी बंदा यहाँ रहता नहीं आराम से ।

जाग जाओ हमवतन अब खौफ खाना छोड़ दो,
चिर डालो हर वो मंजर खूं से जो गुजरा करे ,
फिर खिले वोही बगीचा शांति और सद्प्रेम की,
जित लो अब हर किसी को प्रेम के सन्देश से ।

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