ओश के चादर तले

रात के आगोश में,
ओश के चादर तले,
मैं अकेला एक पथिक,
वृक्ष के निचे पड़ा हूँ,
भीग कर खामोश धरती,
तृप्त है बारिस से मिल कर, 
सूँघ कर मिटटी की खुश्बू,
मन मेरा संतुष्ट है,
झींगुरो के गान से,
अब ये समां संलिप्त है,
जुगनुओ के जश्न में,
देखो शमा भी मग्न है।
एक अनोखा सुख मिला है,
चांदनी में भीग कर ,
मस्त हो कर एक तराना,
फिर  फुट कर बिखराई है ।
   




 




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