जीवन और भौतिकवादी विचारधारा












पूरा जीवन एक यात्रा है ...जिसमें....जन्म उस यात्रा की शुरुआत और मृत्यु...उस यात्रा का अंत।इस मृत्यु के बाद क्या है ...कोई और यात्रा?...पता नहीं..।यात्रा भी ऐसा... जो एक तरफ़ा है...एक गंतव्य से दुसरे,दुसरे से तीसरे...पर तीसरे से दुसरे या पहले पर आना मुमकिन नहीं..नामुमकिन है...।फिर आप पुनर्जन्म पर विश्वास रखते हो तो आपको दूसरा जन्म लेना पड़ेगा...फिर से यात्रा शुरू  करने को।पर सवाल ये है की अगले पर छोड़ा  ही क्यों  जाये ....सच ये है की ये शब्द "अगला".... बड़ा  धोखेबाज  लगता  है...जैसे टालने की कोशिश  हो....बहलाने की कोशिश हो।तो सोचे हम अपने इस  यात्रा की...कोई अगले की नहीं...इसी जीवन की।

कहाँ गए ...कहीं नहीं! क्या पाए...कुछ नहीं!क्या दिया...कुछ नहीं! गीता-सार कुछ ऐसे ही...... कुछ नए मायने देता है ।सीधा मत देखो इस सार को....देखो अपने इस जीवन रूपी यात्रा को और पूछो खुद से...इस यात्रा में कहाँ तक सफल हुए...इंसानियत और इन्सान प्रभावित हुआ!क्या पाया...असल में ये पाना भी एक देना है... सच्चाई को....इंसानियत को....भटकते राही को...।आपने क्या दिया....औरों को..कहीं उन्ही लोगो के तरह आप भी बिना किसी समझ से...जैसे तैसे जीवन काट लिया ... फिर औरों को क्या देंगे..पीछे आने वाली पीढ़ी को क्या बताएँगे...भटका देंगे आप..जैसे खुद भटक गए थे।

सम्हल कर चलो इस सफ़र पर...सिख लेते चलो..साथ में मस्ती से जीते चलो...फिर बनोगे उस गुरु के सामान जिसके अनुयायी...जिसके शिष्य..... उसी के कथन पर चलकर वही मार्ग चुनते है..उस लायक बनो...कुछ देने लायक।

हम बचपन की दहलीज पार कर किशोरावस्था में पहुचते है...फिर नौजवान हो कुलाचे मारते फिरते है मौज-मस्ती में।फिर धीरे -धीरे बुढ़ापा आता है...साथ में रोना भी आता है...और हम फिर तरसते है काश फिर बचपन  आता ....जवानी फिर से छा जाती ...पर प्रभु ये रोना क्यूँ.... जब पता है... ये सफ़र...जीवन का..एक तरफ़ा है।

हर वो इन्सान जो वर्तमान को सही तरीके से नहीं जीता है ....वो ये रोना रोता है...ये बात अलग है की इस युग में हर इन्सान यही रोना रोता है...बल्के अधिक्तर बोलें तो ज्यादा उपयुक्त है।इस भौतिकवादी विचारधारा युग  का नतीजा तो यही होना है।भौतिक सुखों के लालच में...सही सुख का विसर्जन करते रहते है...फिर रोना रोते है...।


तो ये आपके-हमारे हाथों में  है की हम हमारे अगले पीढ़ी के पथ प्रदर्शक बनेंगे या उसी भट्टी में झोकेंगे जिसमे हम  झुकते रहें है अपने ही कर्मो से..।


भौतिक सुखों को छोड़ कर,
विचारों को संवार कर,
नए पीढ़ी को,
एक नया आयाम दो,
प्रकाश दो, उत्थान दो।













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