काबू करो काबू

                                                                

आजकल जिंदगी बड़ी  सुस्त सी गुजरती है ,लगता है घडी की सुइयां निकाल ली गयी गयी हों।
हर मोड़ पर, हर बात पर ,हर वक़्त एक बात जहन में आती है,क्यूँ प्यार उसी से कर बैठा जिसे प्यार कभी नहीं करना था ।
सोचता हूँ क्या इन्सान इतना मजबूर हो जाता है की  अपने पर से ही काबू उठ जाता है!
दिमाग भी सोचता है की दिल की बात सुनता ही क्यूँ हूँ।

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