मैं मतंग सा एक पथिक हूँ



संघर्ष की एक पोटली बांधे,मैं राही चल रहा,
एक ख्वाब को पाले हुए,अरमां को लेके चल रहा,
के राह में विष से भरी, दरिया से भी मैं कह रहा,
ब्याल बनकर आज मैं, हूँ ताप तेरी सह रहा,
दर्प तेरा ये दमन कर, राह पे मैं बढ़ रहा।

मैं मतंग सा एक पथिक हूँ ,भरे विपिन में बढ़ रहा,
चक्षु मेरे हर तिमिर को, चिर कर है बढ़ रहा ।


धैर्य मेरा हेम है ,जिसके बदोलत बढ़ रहा,
के  सोम है ये धैर्य मेरा,सुन विघ्न भी है चिढ रहा,
अश्व सा मैं तेज लेकर,राह में हूँ बढ़ रहा ।
संघर्ष की एक पोटली बांधे ,मैं राही बढ़ रहा ।



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