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शाम को बिस्तर पे मैं तकिये लगा कर सोता हूँ ..पर रूह मेरा ....खिड़की खोले असमान के तरफ देखते हुए चाँद को कोसते रहता है ।फिर मैं भी उठ कर खिड़की के तरफ बढ़ता हूँ ...मुझे मेरे रूह के बेइंतेहा दर्द का इल्म है ....और फिर आखिर में मेरा रूह है ...साथ छोड़ने का मतलब है...सब से छुटी। इसलिए खुद भी खिड़की से लग जाता हूँ रूह को समेटे.... निगोड़े -निकम्मे चाँद के इतेजार में ।फिर अचानक धीरे धीरे रसिया चाँद अपने धीरे धीरे जवान होते चांदनी के साथ अटखेलियाँ करता हुआ प्रकट होता हुआ प्रतीत होता है ।धड़कने धाड़-धाड़ करने लगती है ...रूह मेरा बेचैन होने लगता है।
.....दरअसल चाँद मेरे उस चोर की खबर मुझे रोज सुनाता है जिसने कभी मेरा दिल चुरा कर अपने पास रख लिया है ....सदा के लिए । मैं भी कभी दावा नहीं करने गया अपने दिल का...उससे...प्यार करता हूँ आखिर उससे।
मैं उससे बातें नहीं कर सकता अब ..नाहीं मिल सकता हूँ ....बहुत सारी वजहें है ...वजहों पे नहीं जाऊंगा।
पर दिल भी बड़ी अजीब सी चीज है कभी कभी तो मेरा दिल मुझको ही alien सा लगता है...शायद ये उसका असर है.. की वो अब मेरे ही दिल को मुझसे भी बेहतर समझते है ।
खैर चाँद आता है दमकता हुआ जैसे की उसके चांदनी जैसी महबूबा किसी के पास नहीं ...और ठुमकते -ठुमकते तो ससुरा ऐसे आता है जैसे की चिढ़ा रहा हो .....और मैं बेसब्री में सिगरेट पे सिगरेट फूकते रहता हूँ ...पिए हुए सिगरेटों के बट्टों को निहारते रहता हूँ....पर एक बात अच्छी है के हम मजनुओ का बड़ा साथ देता है ।
धीरे से चाँद मेरे खिड़की पे आता है ...आकर मेरे हाल लेता है ..ससुरा ऐसे देखता है जैसे सहानुभूति प्रकट करने की कोशिश कर रहा हो.....खुद पे बड़ा तरस आता है तब ।फिर चाँद उसके पुरे दिन रात की कहानी बड़े चाव से सुनाता है ...वो भी उसकी नक़ल कर के ।चांदनी जो ठुड़ी अपने हाथों पर जमाये अब तक सारी बातें सुन रही थी ...चिढ़ कर बोली ...ये चाँद भी है पक्का दीवाना ..कहकर नखरे दिखलाती है ।
आजकल तेरे यादों के वजह से दर्द और बढ़ जाता है ...बेबस होकर मेरी ऑंखें फिर दुनियां से छुप कर मानों गंगोत्री बन जाना चाहती है ।काबू करने की कोशिश करता हूँ ...पर भावों के बाढ़ में नदी के प्रवाह को रोकना नामुमकिन हो जाता है .....फिर बच्चो के तरह आज भी रोता हूँ ....तुम्हारी याद में.
ये शायद ऐसा बाढ़ है जो किसी प्रवाह के आने से पहले आती है ...और फिर उस बाढ़ के वजह से एक प्रवाह ।
रोज किसी तरह तुम्हारे यादों को तकिये के निचे तहें लगा कर सोता हूँ ...सोचता हूँ अकेला उठ कर भागूँगा ...यादों को सोने दूंगा ...पर किस्मत और timing ऐसी की मेरे उठते ही तेरी याद भी जग जाती है...गले से लगा पूरा दिन चक्कर काटती है ।
आज तो नींद भी नहीं आ रही ...तुम्हारे बारे में कुछ सुना नहीं आज ..इसलिए शायद ...।चाँद ससुरा चांदनी के साथ छुप कर इश्क फरमा रहा है शायद...।
खिड़की पे फिर चाँद आकर हाल मेरे लेता है,
चाँद फिर तेरी नक़ल कर सारी बातें कहता है,
है चाँद भी पक्का दीवाना, कह चांदनी चिढ़ जाती है।
तेरी यादों में ये अक्सर, दर्द भी बढ़ जाता है,
आँखों से फिर इक नदी बन, बाढ़ सा बह जाता है ।
दर्द का दामन है फिर भी याद से जाता नहीं,
हर सहर ये याद तेरी, साथ में जग जाता है ।
Gud one........ :)
ReplyDeletedhanyavad aapka.....
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