अंश !!!

रात के घने काले साये में ,दुनिया जब सोती है। ....
साँस मेरी बेमरौअत धड़कने दहलाती है/
कल रात भी ऐसा हुआ है …नींद उड़ जाने के बाद........
सोच अपनी अनगिनत रूपों को ले कर आती  है.....
अनमने अनजान से डर खौफ दे कर जाती है /
झटपटाता रूह मेरा दर्द मे धँस जाता है/

बिस्तर की सिलवटों में बिंब मेरा  दिखता है ....
मुड़ी तुड़ी सी आश मेरी , सिलवटे सी लगती है/
सवार लूँ कितना इसे भी ,फिर वही बन जाती है ....

अनगिनत से ख़्वाब मेरे और अनगिनत रूसवाइयां
लड़ रहा हूँ सोच कर ,या ख्वाब दे ,या दे रूसवाइयां ...
अब यहाँ किसको पड़ी है,या जीत दे या हार दे/                           



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