चुभन....

किया जो गिला , उस गिला को क्या कहिये/
जलते हैं मंजर तो मौसम को क्या कहिये/

जो अश्क़ भर दे आँखों में, उस इश्क़ को क्या कहिये/
चुभे हैं इश्क़ में , उस
चुभन को क्या कहिये....
यूँही चलती हैं साँसे, तो साँसों को क्या कहीए /

बंद पड़े उस  कमरे में, एक पतली धूप  की  चादर आती है…
उस धूप कि पतली चादर को छुने की हसरत क्या कहिए /  

बड़े गफलत में हैं हम …
अब हसरतें जो डूबी तो उस  हसरत को क्या कहिये / 

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