उम्मीद!!

अलसाती दोपहर, चटकती धूप और कसमसाती उम्मीद। …
दर्द के लाल बवंडर संग, उड़ जाती है उम्मीद। …

धूल धूल सी, रेत रेत सी ,
इधर उधर छिटकते रहती है.... उम्मीद।

अपेक्षा के ठंडे छिटकारे, हिम्मत के गागर, उड़ती उम्मीद
सबको हर बार समेटे चलता  हूँ

नयी पगडण्डी बनाता हूँ , थोड़ी ऊँची ,
हलके बवंडर तो यूँ ही गुजर जायेंगे,
गागर में अपेक्षा पलती रहती है ,
वक़्त यूँ हीं  गुजरते रहती है /



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