गुत्थियाँ .....

अजीब सी गुत्थियाँ ,गुथिं  है  मेरे मन में
सुलझाने की फुर्सत भी मिलती नहीं है…

हमेशा मैं उलझन में फँसता हूँ  ऐसे …
गुरिल्ला लड़ाई चलती हो जैसे….
अपनी तो किस्मत बदले न बद्ले…
खयालें मैं सबकी बदलता रहा हूँ //

वो टिकाऊ-पन, जिसे तुम हो कहते
अपने किस्मत में अब तक न मिलना हुआ है//
भटकता है मन ,और मैं भी भटकता
भटकन से अब तक बस रंजिश ही मिली है
जो नीवें थी डाली खुद के राह खातिर
आज लगता है जैसे वो खुद खोखली थीं //

उसी खोखले नींव की ये उपज है
जो उलझन की गुत्थी सुलझती नहीं है //

यहीं सोचती  है अब बेबस सी सांसे
ये उलझन न होती जो  नींवे हो सच्ची //




 


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