लड़का रोये,लड़की रोये,दोने के अब्बू भी रोये.

एक जमाना ऐसा था,जब लड़की के अब्बा रोते थे.…
लड़की की शादी हो जाये, दिन रात ये सोचा करते थे…
चेहरे पे चिंतन की रेखा साफ दिखायी देती थी …

अच्छा सा एक लड़का मिलता ,कर देता उसकी सगाई …
जितना बन सकता था उसमें, करता उसकी विदाई …

अब एक जमाना ऐसा है ,लड़के का अब्बा भी रोता है…
बेटा हो गया चौतीस साल का,बस एक लड़की मिल जाए...
झटपट उसकी शादी हो और , नकेल बांधी जाये ….
व्यथा बहोत गमगीन है भाई, चौतीस का बैल ये सोचे …
जैसे तैसे पढ़ लिख के ,अठाईस में जॉब मिली है….
चार -पांच साल सेटल होने में ,यूँ ही गुजर गए हैं….
चौतीस का बुड्ढा हो कर भी ,चौबीस की लड़की खोजे….
यहाँ वहाँ  से थक हार के , matrimonial में झाँके ….
सही उमर को छुपा छुपु के, लड़की को फिर है फासें।






Comments

  1. Good to see a friend, who is also now a poet.. Far better than thousands of the so called common people, who are not even aware, that emotions can be expressed through poems. But still I feel - that the poet is also a revolutionist. Think of that!!

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  2. Thanks Udayan, for your valuable comment.

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