एक कविता लिख लेता हूँ , पता नहीं क्या कर लेता हूँ ....

एक कविता लिख लेता  हूँ , पता  नहीं क्या कर  लेता  हूँ ........
लिख कर के वो  कविता ,मैं बारम्बार पढ़ता हूँ .......

खुश होकर के, वो रचना,  मैं फिर सबको  सुनाता हूँ ...
फिर  खुद ही खुश  हो जाता हूँ  ....

कमबख्त सुननेवाले, चेहरे को कुछ यूँ  बनाते हैं ....
मानो  चायनीज भाषा में,कोई मैं मंत्र पढता हूँ ...

हो फेसबुक वो या हो ब्लोंग वो मेरा ...
खुद ही लाइक करता हूँ, फिर  शेयर भी करता हूँ ....
फिर बार बार अपनी ही रचना, घूरता  रहता हूँ ....
किसी के लाइक्स  या कोई कमेंट्स की  राह तकता हूँ ...

एक कविता लिख लेता हूँ , पता  नहीं क्या कर  लेता हूँ ////





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